अनोखे 22 किस्म के पान का अलग-अलग स्वाद
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अनोखे 22 किस्म के पान का अलग-अलग स्वाद
यूपी की राजधानी लखनऊ जिसे नवाबों का शहर भी कहा जाता है और यहाँ की नवाबियत में चार-चाँद लगाता है यहाँ का लखनवी पान। कोई सैलानी लखनऊ आये और पान का स्वाद न चखे तो कुछ कमी सी महसूस होती है। नवाबों के शहर के इस खास स्वाद को दुनिया भर में शोहरत दिलाने के लिए श्रीकांत ने 22 किस्म के पान बनाने में महारत हासिल की है और खास बात तो यह है कि इन 22 किस्म के पान का स्वाद भी एक-दूसरे से काफी अलग है। श्रीकांत अपने इस हुनर के लिए काफी मशहूर हैं। इन 22 किस्म के पान का स्वाद चखने के लिए श्रीकांत की दुकान पर रोजाना तक़रीबन 250 से ज्यादा ग्राहक आते है। श्रीकांत को यहाँ दुकान खोले अभी 3 महीने पूरे भी नहीं हुए है। इस छेत्र में करीब 40 पान की दुकाने हैं जो कई सालों से चल रही है। लेकिन श्रीकांत की दुकान पर सुबह 11 बजे से रात के 11 बजे तक सबसे ज्यादा ग्राहकों का ताता लगा रहता है।
क्या है श्रीकांत की कहानी?
झारखण्ड के एक छोटे से कस्बे कोडारमा के रहने वाले श्रीकांत कच्ची उम्र में ही बेहतर काम की तलाश में सन 1990 में पहली बार लखनऊ आये थे। उस समय उनकी उम्र महज़ 11 साल ही थी।
पिता की प्राइवेट नौकरी से घर का खर्च पूरा नहीं हो पाता था। खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र में पारिवारिक आर्थिक तंगी ने श्रीकांत को चाये की दुकान पर काम करने पर मजबूर कर दिया। चाये की दुकान से ज्यादा आमदनी न होने की वजह से श्रीकांत ने पान की दुकान लगाना शुरू किया। कुछ अनोखा करने की चाह में श्रीकांत ने अलग-अलग किस्म के पान बनाना शुरू किया। धीरे-धीरे उन्होंने 22 किस्म के पान बनाने में महारत हासिल कर लिया। आज श्रीकांत को इस व्यवसाय में 24 सालों का अनुभव है।
आज भी लखनऊ महोत्सव में श्रीकांत की अनोखी पान की दुकान ढूंडते हैं ग्राहक.....
पान के इस बेताज बादशाह ने अपनी किस्मत को चमकाने के लिए शहर के सबसे बड़े फेस्टिवल "लखनऊ महोत्सव" में अपने हुनर का प्रदर्शन किया। सन 2007 से 2013 तक श्रीकांत ने लखनऊ महोत्सव में अपनी दुकान लगाई। इन सात सालों तक वे महोत्सव में अपनी अनोखी कला के कारण ग्राहकों में स्टार बने रहे। पिछले साल कुछ पारिवारिक समस्याओं के चलते उनकी दुकान महोत्सव में नहीं लग सकी लेकिन पूरे महोत्सव के दौरान पान के शौक़ीन ग्राहक उनको ढूंडते नज़र आये। इस साल भी 2015 के महोत्सव में श्रीकांत ने अपनी दुकान न लगाने का फैसला किया है। एक बार फिर से लखनऊ महोत्सव में श्रीकांत की कमी बनी रहेगी, लेकिन उनके चाहने वाले उन्हें लखनऊ के गोमतीनगर इलाके के कठौता चौराहे पर मिल सकते हैं जहाँ वो अपनी परमानेंट दुकान लगाते है।
22 किस्म के अलग-अलग स्वाद वाले पान बनाने में कितने प्रकार के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है?
अगर आपके मन में यह सवाल उठ रहा है कि क्या 22 किस्म के पान बनाने के लिए उतने की प्रकार के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है? जी नहीं। इतने सारे किस्म के पान बनाने के लिए श्रीकांत 3 प्रकार के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं। पहला जगन्नाथी पान का पत्ता जिसे शुद्ध बनारसी पान भी कहा जाता है। यह बनारसी पत्ता उच्च कोटि का पत्ता होता है जो पूरे भारत में महंगे और स्वादिस्ट पान बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका रंग रूप एक उगते हुए पत्ते की तरह हल्का धानी और मुलायम होता है। इसकी सोंदी खुशबू पान के शौक़ीन लोगों को दीवाना बना देती है। दूसरा सोफिया मीठा पान जो कोलकाता से आता है। इस पत्ते को ज़्यादातर मीठा पान बनाने में इस्तेमाल किया जाता है जिसका स्वाद भी मीठा होता है। तीसरा महोबा का पत्ता जो गाढे हरे रंग का थोड़ा सख्त पत्ता होता है। इस पत्ते का इस्तेमाल तम्बाकू पान बनाने के लिए किया जाता है। श्रीकांत को यह तीनों ही पत्ते लखनऊ में ही डीलर द्वारा आसानी से मिल जाते है।
किस पान को सबसे ज्यादा पसंद करते है लखनऊ वाले?
श्रीकांत की इस पान की अनोखी दुकान पर मज़ेदार और स्वादिस्ट पान की कीमत 8 रुपय से लेकर 50 रुपय तक है। सबसे महंगा पान गुलकंद रबड़ी पान है जिसे चम्मच से खाया जाता है और यह पान महीने भर रखने से ख़राब भी नहीं होता। इस गुलकंद रबड़ी पान की कीमत 50 रुपय है। ग्राहकों को जो सबसे ज्यादा पसंद आता है वो है लखनवी मीठा पान। इस पान की कीमत 20 रुपय है जो जेब पर भी भारी नहीं पड़ती। यह पान नवाबों के दरबार में बनाये जाने वाले मीठे पान का ही क्लोन है जिसमें एक जैसा ही स्वाद मिलता है। यह ट्रेडिशनल पान होने की वजह से शायद लखनऊ के लोग इसे ज्यादा पसंद करते है या फिर इसका नाम लखनवी मीठा पान होने की वजह से इसे ज्यादा पसंद किया जाता है।
क्यूँ घंटा बजा कर ग्राहकों को खिलाते हैं पान?
श्रीकांत की दुकान पर रोजाना काफी दूर-दूर से ग्राहक पान खाने आते है। श्रीकांत भी अपने ग्राहकों की संतुष्टि का पूरा-पूरा ध्यान रखते है। ग्राहक को पान खिलाने से पहले श्रीकांत अपनी दुकान के बाहर लगे घंटे को बजाते है। यह एक प्रकार का इशारा होता है जिसका मतलब होता है कि श्रीकांत अपने ग्राहक से पूछते है कि जो पान उन्होंने ग्राहक को खिलाया वह उसे कैसा लगा? क्या ग्राहक उस पान के स्वाद से संतुष्ट है? यदि ग्राहक को पान पसंद आया तो वो उन्हें जवाब में हाँ कहने के लिए एक बार घंटा बजाता है और श्रीकांत यह समझ जाते है कि उनकी मेहनत कामयाब रही। इससे श्रीकांत को काफी ख़ुशी मिलती है और ग्राहक को उनका यह अनोखा तरीका भी पसंद आता है। इसके साथ ही जब भी कोई नया ग्राहक पहली बार उनकी दुकान पर आता है तो श्रीकांत पान बनाकर अपने हाथों से उस ग्राहक को खिलाते है इससे उन ग्राहकों को एक अपनापन सा लगता है और ग्राहक हर बार उनकी दुकान तक खिंचा चला आता है। श्रीकांत का शांत स्वभाव और मीठी मुस्कान उनके पान से भी ज्यादा ग्राहकों का मन मोह लेती है।
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