Special Report on ISIS



आतंकवाद का इस्लाम से कोई नाता नहीं - शिया, सुन्नी धर्मगुरु 

शुक्रवार के दिन जुमे की नमाज़ के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शिया मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद और सुन्नी मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरु मौलाना रशीद फिरंगी महली ने आतंकवाद और आईएसआईएस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। दोनों ही समुदाय के धर्मगुरु ने स्पष्ट रूप से कहा है कि आतंकवाद का इस्लाम से कोई नाता नहीं है। इस्लाम आतंकवाद नहीं सिखाता और जो इस्लाम को आतंकवाद कहते है वे पहले इस्लाम की शिक्षा लें। आधी-अधूरी जानकारी ज़हर का काम करती है। जो भी आईएसआईएस और आतंकवाद को इस्लाम व मुसलमानों से जोड़ने की बात करता है वह असल में धर्मविरोधी ज्वलनशील भावनाओं से ग्रस्त है। 
आपको बता दें कि आईएसआईएस ईराक से जन्मे आतंवादी संगठन का नाम है जिसे दुनिया खौफ का दूसरा नाम भी कहती है। तत्कालीन अमेरिकन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लू बुश के नेतृत्व में अमेरिका ने अनैतिक तरीके से ईराक के शासक सद्दाम हुसैन की सल्तनत को ख़त्म करने और सद्दाम के पूरे परिवार सहित हज़ारों बेकसुरों को मौत के घाट उतारने के बाद ही आईएसआईएस का जन्म हुआ। ईराक-ईरान में सदियों से शिया-सुन्नी का मसला चलता चला आ रहा है जिस पर इज़राईल जैसे देश भी अपनी रोटियां सेकने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे। सद्दाम हुसैन के समय में सैकड़ों की संख्या में शिया मुस्लिमॉ को कैद में रखा गया था। शासन-प्रशासन और राजनैतिक बागडोर ज़्यादातर सुन्नी समुदाय के हाथों में ही रहती थी। अमेरिका की बर्बरता के चलते ईराक पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया जिसके बाद जेल में कैद शिया कैदियों को अमेरिका ने ना केवल आज़ाद ही किया बल्कि सदियों से चली आ रही सुन्नी समुदाय की सल्तनत की कमान पूरी तरह से शिया समुदाय को सौंप दी। वजह थी शिया समुदाय का अमेरिका को समर्थन। अमेरिका की इस बर्बरता और पक्षपात की निंदा सभी देशों ने की। इन्ही दिनों अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव हुआ और बराक ओबामा पहली बात अमेरिकन राष्ट्रपति चुने गए। जब पूरी दुनिया में अमेरिका की छीछालेदर होने लगी तो बराक ओबामा ने बड़ी ही समझदारी से अपने पहले राष्ट्रपति द्वारा की गई गलती को बतौर सुधारने की कोशिश करते हुए ईराक से अमेरिकन आर्मी वापस बुला ली लेकिन युद्ध के दौरान गिरफ्तार किये गए सद्दाम हुसैन की फांसी की सजा ज्यूं की त्यूं बरकरार रखी। बस यहीं से शुरू हुई आईएसआईएस की कहानी। 

युद्ध विराम के बाद ही ईराक में गृह युद्ध होने शुरू हो गए। अमेरिकन आर्मी के हाथों से ज़िंदा बच निकलने में कामयाब सद्दाम हुसैन का एक आर्मी कमांडर अपने बचे हुए सैनिकों को अंदर ही अंदर पुनः युद्ध के लिए तैयार करने की कवायद में लग गया जिसका नतीजा पहले से ज़्यादा और खतरनाक आतंकी संगठनों का गठन और अत्याधुनिक हथियार व आर्मी ट्रेनिंग के साथ सामने आया। इसी के बाद पहली बार अल-नुसरह और आईएसआईएस का खौफनाक चेहरा पूरी दुनिया ने देखा। आज भी ईराक की सरज़मी पर पूरी तरह से शिया समुदाय का वर्चस्व है जो आईएसआईएस को नगवारह गुज़र रहा है। यही वजह है कि ईराक में शिया आर्मी और आईएसआईएस के बीच गृह युद्ध और भी ज़्यादा घातक रूप ले चुका है। इस युद्ध में आईएसआईएस के निशाने पर अमेरिकन आर्मी तो है ही साथ ही साथ वे समुदाय भी हैं जो अमेरिका का समर्थन कर रहे है।   

Comments

loading...